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मसाला ( कहानी) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु04-Mar-2024

दिनांक- 04,0 3, 2024 दिवस- सोमवार स्वैच्छिक विषय-मसाला (कहानी) प्रतियोगिता हेतु

क्यों कुछ लोगों को किसी को परेशान करने में ही आनंद की अनुभूति होती है। वो किसी को जितना अधिक परेशान करते हैं शायद उन्हें उतनी ही अधिक संतुष्टि मिलती है। कुछ ऐसा ही था गौरी के ससुराल वाले लोगों का हाल। उन्हें गौरी को कष्ट देने में बड़ा मज़ा आता था।

गौरी तीन 3:30 बजे भोर में उठती और 5:30 बजे तक झाड़ू पोछा, बर्तन सब कुछ करके नहा चुकी होती थी। क्योंकि 5:30 बजे घर के लोग उठ जाते थे और घर के लोगों के उठने से पूर्व उसे अपना सारा काम ख़त्म कर लेना होता था। गौरी अपने कार्य को बड़े ही तल्लीनता से करती थी ताकि उसके परिवार के लोग उससे खु़श रहें, लेकिन खुशियाॅं तो उससे कोसों दूर बसती थीं। ख़ुशी और गौरी का रिश्ता उसी दिन टूट गया था जिस दिन वह अपने माता-पिता के घर से विदा होकर ससुराल आई थी। समय जैसे-जैसे बीत रहा था गौरी की ज़िंदगी पेचीदा होती जा रही थी। एक दिन गौरी बाथरूम से कपड़े लेकर निकल रही थी, पैर फिसला और वह गिर पड़ी और उसके दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली टूट गई। अब गौरी से पहले जैसा काम नहीं हो पा रहा था लेकिन फिर भी वह बिना उफ़ किए हर काम को करने का हर संभव प्रयास करती थी, लेकिन उससे सील पर मसाला नहीं पीसा जाता था। लेकिन उसके ससुराल वाले थे कि उन्हें सील पर पीसा हुआ मसाला ही पसंद आता था, दरअसल बात यह नहीं थी कि उन्हें सील पर पीसा हुआ मसाला ही पसंद आता था, बल्कि बात यह थी कि उन्हें गौरी से सील पर ही मसाला पिसवाना था, क्योंकि गौरी दर्द के कारण सील पर मसाला पीस पाने में सक्षम नहीं थी। वहाँ ससुराल में कोई भी उसका साथ देने वाला नहीं था। यहांँ तक कि उसका पति धनंजय भी नहीं जिसके सहारे वह अपने मांँ- बाप, भाई- बहन, मित्र, नात- रिश्तेदार आदि सभी अपनों को छोड़कर इस उम्मीद में आई थी कि जो उसकी मांँग में सिंदूर भरा है वह उसकी ज़िंदगी में खुशियाॅं भी भरेगा। उसके हर सुख-दुख में उसके साथ होगा।

लेकिन ससुराल आने पर सब कुछ उल्टा हो गया पूरे घर में वह एकदम अकेली हो गई। कोई भी उसके सुख- दुख को बांँटने वाला नहीं था। उसके हाथ का दर्द दिन पर दिन बढ़ता ही चला गया। क्योंकि, उसकी देख-रेख करने वाला कोई नहीं था। नतीज़ा यह हुआ कि दर्द बढ़ते-बढ़ते इतना अधिक बढ़ गया कि वह अपने दैनिक कार्यों को भी करने में असहज महसूस करने लगी। लेकिन उसके ससुराल के लोग जिनके सहारे वह जीवन भर के लिए अपने घर को छोड़कर गई थी उसके चेहरे की उदासी, उसके आँखों के आँसू दिखाई नहीं पड़ रहे थे, बस अगर कुछ दिखाई पड़ रहा था तो यह कि तुमने यह काम क्यों नहीं किया? तुमने वह काम क्यों नहीं किया? यह साफ़ नहीं हुआ ,वह साफ़ नहीं हुआ आदि।

वह अपने दर्द और ससुराल के साजिशों के मध्य जूझ रही थी, तभी एक दिन उसकी एक सहेली का फ़ोन आया। उसकी सहेली ने जब हाल-चाल पूछा तब गौरी ने कहा सब ठीक है, सब लोग बहुत प्यार से रहते हैं, तभी पीछे से उसकी सास की कर्कश आवाज़ सहेली के कानों में पड़ी। सहेली सासु माँ की आवाज़ सुनते ही समझ गई गौरी सब कुछ झूठ बोल रही है। वह जैसा कह रही है वैसा कुछ भी नहीं है।

तब उसने गौरी से पूछा, बता गौरी क्या बात है? तू मुझसे झूठ बोल रही है न, क्या मैं इतनी पराई हो गई हूॅं ,मैं तेरी वही सहेली हूॅं जो बचपन में एक टॉफी में बांँट कर दो टुकड़े करके खाते थे और अपने हर सुख-दुख को एक दूसरे से बाँटते थे। प्लीज बता गौरी क्या बात है? हो सकता है मैं तेरी कुछ मदद कर सकूँ।

अपनी सहेली के इस तरह की आत्मीयता भरे बातों को सुनकर गौरी के सब्र का बांँध टूट गया और वह फफक-फफककर रोने लगी। सहेली ने कहा- बस, बस कर गौरी ,अब बता क्या बात है? तब गौरी ने अपनी सहेली शिखा से अपने हाथों के दर्द के विषय में बताया, तब उसकी सहेली ने कहा तू किसी तरह से जीजा जी के साथ घूमने के बहाने एक दिन मेरे घर आजा मैं तुझे मसाले का पाउडर बनाकर दे दूंँगी शाम को जब मसाला पीसने का वक्त होगा तो उस पाउडर मसाले को ही धीरे से निकालकर सील पर रखकर पीस लेना। इस तरह से उन्हें यह भी संतुष्टि हो जाएगी कि वो सील पर का पिसा हुआ ही मसाला खा रहे हैं और तू इस असहनीय दर्द से भी बच जाएगी।

लेकिन अब मुश्किल यह थी कि गौरी अपने पति से कहे तो कैसे ,क्योंकि उसके पति का यही कहना था कि अब यही तुम्हारा घर है इसलिए ये लोग जैसा चाहते हैं वैसा ही करो। गौरी बार-बार अपने पति से अपनी सहेली के यहांँ चलने को कहने का हिम्मत जुटाती, लेकिन बार-बार हिम्मत छूट जाती है। एक शाम जब वह मसाला पीस रही थी तभी उसका पति उधर से गुज़रा और उसने देखा गौरी जितना मसाले में पानी नहीं डाल रही है उससे ज़्यादा उसके आंँखों से अनवरत आँसू बह रहे हैं। गौरी की आँखों से इस प्रकार आँसू को बहते देखकर उसका पति थोड़ा पसीज गया उस समय तो उसने न देखने का नाटक किया, किंतु जब रात को कमरे में आया तब उसने गौरी से पूछा क्या बात है? शाम को मसाला पीसते- पीसते इतना रो क्यों रही थी? तब गौरी अपने पति को पकड़कर फूट-फूट कर रोने लगी और कहने लगी, मेरे हाथों में बहुत दर्द होता है मुझसे बिल्कुल भी मसाला नहीं पीसा जा पाता है, प्लीज आप पाउडर वाला मसाला ला दीजिए न।

गौरी की इस प्रकार की बातों को सुनकर उसके पति ने कहा- नहीं मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकता, यदि मैंने ऐसा कर दिया तो तुम और भी बड़ी मुसीबत में फंँस सकती हो।

तब गौरी ने कहा मेरे पास एक उपाय है, क्या आप मेरा साथ देंगे? उसके पति ने कहा बताओ, तब उसने कहा मेरी सहेली शिखा है न जो शादी में हर जगह मेरे साथ- साथ थी, धनंजय ने कहा हांँ- हाँ मुझे याद है, आगे बोलो, तब गौरी ने कहा उसी ने मुझे बुलाया है चलिए न हम लोग उसके यहाॅं मिलने चलते हैं। मैं भी बहुत ऊब गई हूॅं ।उसके पति ने कहा लेकिन चलेंगे कैसे? घर में मांँ को क्या बोलेंगे?

तब गौरी ने कहा अब यह तो आप समझिए कि कैसे, क्या बोलेंगे। तब उसके पति ने कहा, ठीक है मैं कोई उपाय सोचता हूंँ।

उसके पश्चात गौरी और उसका पति दोनों सो गए क़रीब एक सप्ताह के पश्चात धनंजय अपनी मांँ से देवी मांँ का दर्शन करने जाने के लिए पूछा। पहले तो माँ ने नाक भौं सिकोड़ा फिर ताने-बाने देते हुए हांँ बोल दीं।जाओ- जाओ कौन सा मैं मना कर दूँगी तो तुम मान ही जाओगे। बस मन बे मन किसी भी तरह उनका हाँ कहना धनंजय और गौरी के लिए मुँह माँगी मुराद का मिलना था।

फिर उस रात धनंजय जब कमरे में आया तो गौरी से बोला- हम लोग कल तुम्हारी सहेली के यहांँ चलेंगे और उधर से दर्शन भी कर लेंगे, मैंने मांँ से पूछ लिया है।

सुबह दोनों पति-पत्नी नहाए- धोए पहले गौरी ने घर में पूजा किया उसके पश्चात ख़्वाबों के पर लगाकर अपने सास-ससुर के चरण स्पर्श कर अपनी सहेली के यहाँ तथा मंदिर दर्शन करने के लिए गई। पहले गौरी और धनंजय दर्शन किए उसके बाद गौरी की सहेली शिखा के यहाँ आ गए। दोनों सखियांँ सालों बाद मिली थीं। गले लगीं तो लग रहा था जैसे अलग ही नहीं होंगी। तभी धनंजय ने कहा- अरे भाई ! गौरी के साथ मैं भी हूॅं ।आप तो सिर्फ़ अपनी सहेली में ही खो गईं।शिखा ने कहा नहीं-नहीं माफ़ करिएगा ऐसी कोई बात नहीं है वो इतने दिनों बाद मिले हैं न तो---।

फ़िर गौरी, धनंजय, शिखा और राम चारों ख़ूब गप्पे , हंँसी- ठिठोली किए, एक साथ खाना खाए, शाम को घूमने गए, रात में राम और धनंजय तो सो गए लेकिन शिखा और गौरी पूरी रात बातें कीं और बात करते-करते कब तारे डूबने को आ गए और सूरज निकलने के लिए व्यग्र हो गया इस बात का पता उन्हें चिड़ियों के चहचहाने और मुर्गे के बाँग देने से हुआ।

तब गौरी ने हड़बड़ाते हुए कहा- अरे बाप रे ,सुबह हो गई! शिखा जल्दी-जल्दी तैयार होकर निकलना होगा नहीं तो मांँ जी नाराज़ हो जाएंँगी। फिर दोनों फटाफट उठीं ,गौरी नहा- धोकर चलने के लिए तैयार होने लगी और शिखा नाश्ता बनाई। फिर चारों बैठकर एक साथ नाश्ता किए। जब गौरी चलने लगी तब शिखा उसे दो डिब्बे में अलग-अलग तरह के मसाले दी।

एक में रोज़ का मसाला और एक डिब्बे में कभी कोई स्पेशल चीज़ बने तो उसके लिए मसाला बना कर दी और बोली देख बहुत चालाकी से यूज करना किसी की नज़र न पड़े। शिखा ने गौरी को मसाला क्या दिया गौरी को ऐसा लग रहा था जैसे उसने उसका दर्द ही बांँट लिया हो। गौरी की आंँखों से सावन भादो की बरसात हो रही थी। शिखा ने उसे गले से लगा लिया और पीठ थपथपाते हुए कहा- मत रो, मत रो मेरी सखी! भगवान पर भरोसा कर सब ठीक हो जाएगा।

गौरी और धनंजय ढेर सारे मीठी यादों को सँजोए विदा लिए और अपने घर पहुंँच गए। गौरी अब शाम को जब उसके सास- ससुर, देवर सब लोग बाहर बैठकर गप-शप कर रहे होते उसी समय मसाला पीस लेती थी।एक महीने तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा लेकिन तभी उसके देवर को शायद आभास हो गया की भाभी जो मसाला घर में उन्हें पीसने को मिलता है वह प्रयोग न करके कोई दूसरा मसाला प्रयोग कर रही हैं। क्योंकि घर में जो उसे मसाला मिलता था उस मसाले में सिर्फ़ एक चम्मच धनिया,नाम के जीरा, काली मिर्च, दो- चार जवा छिलके सहित लहसुन होता था जिससे सब्जी एकदम बे स्वाद बनती थी लेकिन जो मसाला गौरी डालती थी वह मसाला काफ़ी अच्छे किस्म का था अतः सब्जी काफ़ी स्वादिष्ट बनने लगी।

एक दिन गौरी बाथरूम में नहाने गई तभी उसके देवर ने उसके अलमारी की तालाशी ले लिया। और जैसे ही गौरी नहाकर बाथरूम से बाहर आई, उसका देवर दोनों मसाले के डिब्बे ले आया और उसकी आंँखों के सामने ही मसाले को नाली में डालकर ऊपर से बाल्टी का पानी गिरा दिया और मसाले नाली में बह गए।

मसाले को इस प्रकार नाली में बहते देखकर गौरी टूटकर रोने लगी और ईश्वर को याद करते हुए सोचने लगी, उसने क्या सोचा था और उसके साथ क्या हो रहा है! यह किस ग़लती की सज़ा मिल रही है उसे? क्यों, क्यों ऐसा हो रहा है? क्यों भैया ने मसाले को नाली में बहा दिया? उस मसाले के साथ-साथ उसकी सॉरी हसरतें, सपने, सब कुछ नष्ट हुए जा रहे थे। उसकी आंँखों से बहते हुए आंँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे वह बार-बार ईश्वर से पूछ रही थी, आख़िर किस ग़लती की सज़ा यह मुझे मिल रही है? क्या गुनाह किया है मैंने? क्यों मुझे इतना तड़पाया जा रहा है ?

लेकिन उसे कुछ भी ज़वाब नहीं मिल रहा था, क्योंकि ज़वाब कुछ था ही नहीं। ज़वाब तो सिर्फ़ यह था कि तुम एक ऐसे परिवार की बेटी हो जहांँ से तुम्हें एक बार शादी करके भेज दिया गया तो फिर तुम उस घर में सिर्फ़ और सिर्फ़ मेहमान बनकर ही रह सकती हो। वहाॅं आकर तुम्हें रहने का, अपने दुख- दर्द को कहने का अधिकार नहीं है। इसके अतिरिक्त एक ऐसे पति की पत्नी हो जिसने तुमसे शादी करके तुम्हें अपनी पत्नी तो बनाया लेकिन तुम्हारी ज़िम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं है। इस तरह के ख़यालों में खोए- खोए गौरी फिर से दर्द के साथ मसाला पीसना और बेस्वाद सब्ज़ी बनाना को ही अपनी किस्मत मानकर उसी ज़िंदगी में वापस लौट आई। उसे उसके हाथों से ज़्यादा दर्द उसके अपनों के द्वारा किया गया कुटिल व्यवहार दे रहा था, किंतु अब वह दर्द के साथ जीना सीख गई थी।उसे ही अपनी किस्मत समझ ली थी। क्योंकि अब इस दुनिया में कोई भी उसे इस दर्द से बचाने वाला नज़र नहीं आ रहा था। वह भी नहीं जिसे दुनिया का रखवाला, परमेश्वर कहा जाता है क्योंकि शायद यह सब उसी का तो किया धरा था।

लेकिन तभी धनंजय को अपने पत्नी के प्रति अपने कर्तव्य का भान हो गया। उसे इस चीज़ का एहसास हो गया कि, जब मैं गौरी को ब्याह के ले आया हूंँ, तो उसके सुख- दुख का ख्याल रखना मेरी ज़िम्मेदारी है। लेकिन वह चाहकर भी अपने माता-पिता के घर में गौरी के लिए कुछ नहीं कर सकता था। अतः वह गौरी को लेकर दूसरे शहर में चला गया। वहांँ पर गौरी और धनंजय एक किराए के घर मे खुशी- खुशी रहने लगे और इस तरह से जो गौरी अपनी ज़िंदगी से हार गई थी। वह पूरी तरह अवसाद ग्रसित हो गई थी, उस गौरी के जीवन में फिर से वसंत का आगमन हो गया था।

सीख-एक लड़की अपने माता-पिता, सखी- सहेली, भाई- बहन सब कुछ छोड़कर ससुराल में अपने पति के सहारे आती है।यदि उसे उसके पति का साथ, विश्वास, प्यार नहीं मिलता है तो वह टूट जाती है। दूसरी तरफ़ यदि उसके पति का साथ मिलता है तो वह जीवन के हर मुश्किलों का सामना हंँसते हुए कर लेती है।

साधना शाही, वाराणसी

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4 Comments

Sadhana Shahi

16-Mar-2024 03:08 PM

thanks 🙏

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Gunjan Kamal

05-Mar-2024 07:37 PM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

05-Mar-2024 11:13 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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